तलाश हैः भारत के पहले समृद्धि प्रधानमंत्री की- भाग 4

हर चुनाव में, भारते के मतदाता बड़ी उम्मीद के साथ अपने मताधिकार का इस्तेमाल करते हैं-लेकिन इस बार यह अलग है। आखिरकार, उनके भावी नेताओं द्वारा हर बार यही तो कहा जाता आया है। हर चुनाव अद्भुत कल्पना, रोमांचक वादों और शानदार सपनों के बारे में है। कुछ छोटे उपहार पाकर मतदाता इन शानदार सपनों से भी सहमत हो जाते है। हर चुनाव, जैसा कि एच. एल. मेंकेन भली भांती समझाते हैं, चोरी की गई वस्तुओं की अग्रिम निलामी है। चोरी की हुई वस्तुओं को ए द्वारा बी, सी और डी को दिया जाता है। क्योंकि बहुमत की जीत होती है और बी,सी व डी के पास 3 मतदान है तथा ए के पास 1।

हर चुनाव में, भारते के मतदाता बड़ी उम्मीद के साथ अपने मताधिकार का इस्तेमाल करते हैं-लेकिन इस बार यह अलग है। आखिरकार, उनके भावी नेताओं द्वारा हर बार यही तो कहा जाता आया है। हर चुनाव अद्भुत कल्पना, रोमांचक वादों और शानदार सपनों के बारे में है। कुछ छोटे उपहार पाकर मतदाता इन शानदार सपनों से भी सहमत हो जाते है। हर चुनाव, जैसा कि एच. एल. मेंकेन भली भांती समझाते हैं, चोरी की गई वस्तुओं की अग्रिम निलामी है। चोरी की हुई वस्तुओं को ए द्वारा बी, सी और डी को दिया जाता है। क्योंकि बहुमत की जीत होती है और बी,सी व डी के पास 3 मतदान है तथा ए के पास 1।

पिछले 70 सालों में, भारत की समृद्ध विरोधी मशीन दुनिया की अपने तरह की सबसे बड़ी मशीन बन कर उभरी है। इसे आशातीत सफलता हासिल हुई है। कुछ लोग इससे बचकर विदेशों में उद्योगों के माध्यम से समृद्धि हासिल करने में कामयाब रहे, जहां अब तक यह मशीन नहीं पहुंच पायी है। कुछ क्षेत्रों में, इसका वर्चस्व संपूर्ण था। शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और कृषि – यह वह जगह है जहां समृद्ध-विरोधी मशीन का दुष्प्रभाव अच्छे से देखा जा सकता है। शुरुआती दिनों से लेकर अब तक, हर प्रधानमंत्री ने यह सुनिश्चित किया है कि समृद्ध विरोधी मशीन का काम जारी रहे।

हर वो प्रधानमंत्री जिन्होंने भारत में शपथ ग्रहण की, उनके पास समृद्धि विरोधी मशीन को कुचलने का विकल्प था। हर प्रधानमंत्री जिसके पास शक्ति थी -जो उस पद के साथ आती है। दुर्भाग्यवश, किसी भी प्रधानमंत्री ने समृद्ध विरोधी मशीन को नष्ट नहीं किया। मुख्य रूप से दो दल थे- कांग्रेस और भाजपा। कांग्रेस का 55 साल तक शासन रहा तो वहीं भाजपा के पास 10 साल थे। 65 साल तक दोनों पार्टियों के पास अवसर थे। कांग्रेस ने निश्चत रूप से समृद्ध विरोधी मशीन का निर्माण कर उसका विकास किया, परंतु भाजपा के पास अवसर होने के बावजुद उन्होंने इसका खात्मा नहीं किया। इसके बजाय उन्होंने इसे चलाना जारी रखा, नोटबंदी से इसे और बढ़ावा मिला।

जब प्रधानमंत्री शपथ ग्रहण करता है, तब लोगों की आशाएं काफी उच्च होती है और वे बेहतर भविष्य के सपने देखते हैं। उस समय, अनजाने में ही हर नागरिक यह प्रार्थना करता है कि समृद्धि विरोधी मशीन नष्ट हो जाए। लेकिन किसी भी प्रधानमंत्री ने कभी ऐसा नहीं किया, क्योंकि निजी शक्ति के लिए अल्पकालिन लालच, सार्वजनिक समृद्धि की दीर्घकालिक मुद्दे पर हावी हो जाती है। यह हमारे देश की दुखद कहानी है। जब तक समृद्ध विरोधी मशीन का खात्मा नहीं किया जाएगा, तब तक भारतीयों का भविष्य उज्जवल नहीं होगा। एक राष्ट्र के रूप में उभर कर समृद्ध विरोधी मशीन का खात्मा करने का समय है। यह निर्णय करने का समय है कि बस अब बहुत हो चुका।

अगला चुनाव सिर्फ एक ही मुद्दे के बारे में होना चाहिए – समृद्ध विरोधी मशीन का खात्मा करना और हर उस पार्टी और नेता का निर्वासन करना जो इसके निर्माण या इसके निरंतरता के लिए जिम्मेदार है। अगला चुनाव सिर्फ एक ही व्यक्ति को मतदान देने के लिए केंद्रित होना चाहिए जो यह समझा सके कि किस तरह समृद्ध विरोधी मशीन को नष्ट किया जाएगा, वह व्यक्ति जो देश का पहला समृद्धि प्रधानमंत्री होगा। तब ही हम बढ़ सकते हैं और भारत की उन्नति होगी।