बेगानी शादी में कोर्ट दीवाना

दहेज रोकथाम और शादी में फिजूलखर्ची को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को शादी में हुए खर्चों का हिसाब-किताब बताना अनिवार्य बनाने पर विचार करने और जल्द ही इस मामले में कोई नियम बनाने के लिए कहा है।

किसी भी परिवार के लिए शादी एक बड़ा समारोह होता है। हर किसी का सपना होता है अपने बच्चे की धूमधाम से शादी करने का। लेकिन अब इस पर भी कोर्ट की वक्र दृष्टि पड़ गई है। पिछले दिनों एक केस की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि शादी के खर्चों  का हिसाब-किताब बताना अनिवार्य बनाने पर केंद्र सरकार विचार करे और जल्द ही इस मामले में कोई नियम बनाए। कोर्ट ने एक सुझाव दिया कि वर-वधु दोनों पक्षों को संयुक्त रूप से शादी पर हुए खर्चों की जानकारी न्यायिक विवाह अधिकारी को बताना अनिवार्य होना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि दहेज रोकथाम और दहेज प्रताड़ना के झूठे आरोपों से बचने के लिए यह ब्योरा काम आएगा।

धूमधाम से शादी के अरमान

कोर्ट का आदेश सुनकर लोग पशोपेश में हैं कि उन्हें खुश होना चाहिए या मायूस! एक औसत भारतीय शादी के उत्सव की तैयारी बरसों से करता है। इसके लिए लोग विशेष रूप से अपने बच्चों की शादी के लिए बरसों बचत करते हैं। पहनने-ओढ़ने में किफायत करते हैं, जाने कितने शौक और इच्छाओं की तिलांजलि दे देते हैं। तब कहीं जाकर शादी-ब्याह के लिए पाई-पाई जोड़ पाते हैं। …फिर आती है वो घड़ी जब वे अपने दिल के अरमान निकालते हैं, अपनी हैसियत के अनुसार बड़े धूमधाम से अपने बच्चे की शादी करते हैं। समाज में अपनी हैसियत, अपना रुतबा बढ़ाने का मौका होता है विवाह समारोह। इसी मानसिकता के चलते लोग दिल खोल कर खर्च करते हैं। इसके अलावा बरसों से चली आ रही परंपरा के अनुसार शादी सबसे खुशी का मौका होता है जब पूरा कुनबा इकट्ठा होता है, दूर-दूर से रिश्तेदार आते हैं, पास-पड़ोस, जान-पहचान के सभी लोगों को न्योता जाता है।

दहेज की नाजायज मांग

शादी की इन खुशियों में ग्रहण तब लग जाता है जब कोई दबाव डाला जाता है। अक्सर लड़के वाले भारी-भरकम दहेज की नाजायज मांग करते हैं और लड़की वालों का पूरा बजट गड़बड़ा जाता है। लड़के वालों की फरमाइश ऐन शादी के दिन तक चलती रहती है। ऐसे में सारी खुशियों पर पानी फिर जाता है। शादी का पूरा मजा किरकिरा हो जाता है।

… और यही सब कारण होते हैं किसी रिश्ते के बिगड़ने के, किसी शादी के टूटने के! दहेज की मांग पूरी न होने पर अक्सर दुल्हन को सताया जाता है, उसे प्रताड़ित किया जाता है। फिर बात पहुंच जाती है- कोर्ट-कचहरी तक! दुल्हन के घरवाले अपनी बेटी के साथ-साथ अपना दिया हुआ दहेज भी वापस मांगते हैं। कोर्ट रूम में अकसर विवाद दहेज को लेकर होता है। लड़की वाले आरोप लगाते हैं कि उन्होंने ज्यादा सामान दिया था तो लड़के वाले दहेज का सामान न लौटाने के लिए झूठ बोलते हैं।

न्यायिक विवाह अधिकारी के पास खर्चों का ब्योरा

अगर इस नियम अनुसार दोनों परिवार अपने-अपने खर्चों का विवरण न्यायिक विवाह अधिकारी के पास दर्ज कराकर रखते हैं तो भविष्य में दहेज संबंधी कोई विवाद होने पर कोई भी पक्ष झूठ नहीं बोल पाएगा। परंतु इस बात की क्या गारंटी कि शादी के खर्चों का हिसाब न्यायिक विवाह अधिकारी को देने की अनिवार्यता से भ्रष्टाचार के लिए एक और रास्ता नहीं खुल जाएगा!

इससे पहले भी समय-समय पर यह भी मांग उठती रही है कि शादी में दिखावे के नाम पर होने वाले अनाप-शनाप खर्चों पर रोक लगनी चाहिए। कोर्ट ने इस बाबत एक सुझाव यह भी दिया है कि शादी के खर्चों में कटौती करके उस रकम को पत्नी के नाम जमा कर देना चाहिए जो भविष्य की जरूरतों के काम आ सके।

कोर्ट की इस पहल का स्वागत करना चाहिए इससे शादी के खर्चों में पारदर्शिता आने के कारण दहेज पर लगाम लग सकेगी। साथ ही कानून का डंडा पड़ने से दहेज के लालच में महिलाओं के प्रति हिंसा-प्रताड़ना में कमी आएगी।­

दहेज-प्रथा को रोकने के लिए पहले भी प्रयास किए गए हैं। कई विधेयक लोकसभा में रखे गए हैं। साल 2016 में कांग्रेसी सांसद रंजीत रंजन (सांसद पप्पू यादव की पत्नी) ने एक बिल लोकसभा में पेश किया था कि अगर कोई शादी में 5 लाख से ऊपर खर्च करता है तो उस रकम का 10 प्रतिशत किसी गरीब लड़की की शादी में खर्च करना होगा। मगर रोज-रोज जिस तरह कीमतें बढ़ रही हैं उसे देखते हुए यह विधेयक भी अव्यावहारिक ही कहा जाएगा।

शादी में फिजुलखर्ची रोकथाम के 6 विधेयक

यही नहीं पिछले 20 सालों से शादी में फिजुलखर्ची रोकथाम के 6 विधेयक संसद में लटके हुए हैं, जो अभी तक अपने पास होने का रास्ता देख रहे हैं। मगर इन सबको देखकर ऐसा नहीं लगता कि कोई शादी की दावत छोड़ना चाहता हो! खुद इन विधेयकों को पेश करने वाले सांसद अपने पैसे के दिखावे को छोड़ पाए हों! साल 2005 में ऐसा ही बिल पेश करने वाले एक सांसद रायपति संबासिवा राव ने 2016 में अपनी शादी की 50वीं सालगिरह बड़े ही धूमधाम से मनाई, जिसमें आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री सहित कई वीआईपी मुख्य अतिथि थे। बेगानी शादी में फिजूलखर्ची पर उपदेश देने वाली सांसद रंजीत रंजन की शादी भी काफी शाही अंदाज में हुई थी।

 

दूसरों को भाषण देने वाले ये नेता अगर उसे स्वयं अपने जीवन में पहले उतारें तभी वे जनता के सच्चे हितैषी होंगे और तभी ऐसे कानून व्यावहारिक बन पाएंगे और तभी इनकी सार्थकता है। कानून इस बात को भी सुनिश्चित करे कि बड़े-बड़े नेता, खिलाड़ी, उद्योगपति, फिल्मी लोगों तक भी शादी में फिजूलखर्ची रोकने का संदेश पहुंचे और वे इसे अमल में भी लाएं।

शादी के अत्यधिक खर्चों को लेकर सुप्रीम कोर्ट के दखल से यही लगता है कि ये मामला अब गंभीर हो चुका है। अपनी हैसियत से बढ़कर कर्ज लेकर शादी पर खर्च करना समझदारी नहीं है। दूसरी बात यह कि हर नागरिक को अधिकार है कि वह अपने धन का कैसे उपयोग करता है। साथ ही हर किसी नागरिक की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह अपने अधिकारों का दुरुपयोग न करे। दहेज-प्रथा जैसी सामाजिक कुरीतियों को बढ़ावा न दे। अपने निजी स्वार्थों के चलते दहेज-प्रताड़ना से बचें। तभी शादी जैसी पवित्र संस्था का अस्तित्व बना रह पाएगा। शादी की दावत में ही आनंद है अपने लालच से इसका मजा खराब न कीजिए…!