खेत-मिट्टी बिना खेती

अगर आप रासायनिक खादों से पकी सब्जियां खाकर तंग आ चुके हैं तो थोड़ी मेहनत और अक्ल से बिना खेत और बिना मिट्टी के मनचाही सब्जियां खुद उगा सकते हैं।

हमें अनाज, फल, सब्जियों की रोज़ाना जरूरत पड़ती है। हरी-ताजी, अच्छी गुणवत्ता वाली सब्जियों की मांग हर समय रहती है। लेकिन इन सब्जियों में कीटनाशक की मात्रा मानक सीमा से अधिक पाई जाती है। लिहाजा किसान अब जैविक खेती की ओर मुड़ रहे हैं। यही नहीं जैविक भोजन की चाह में लोग अब खुद सब्जियां उगाने लगे हैं। खेत उपलब्ध न होने के कारण लोगों ने इसके भी विकल्प तलाश लिए हैं। घर की जरूरतों के अलावा अतिरिक्त सब्जियों को बेचकर लोगों ने कमाई करनी भी शुरू कर दी है। यही नहीं कुछ लोगों ने इसे शुद्ध व्यावसायिक रूप दे दिया है और वे अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। … तो आज हम आपको ऐसी ही बिना खेत की खेती के बारे में बताने जा रहे हैं।

सबसे पहले बात करते हैं- छत को ही खेत बना देने की। खेती की जमीन के न होने और खेती-बाड़ी के शौक के चलते कई लोग अब अपनी छत का उपयोग सब्जियां-फल आदि उगाने के लिए करने लगे हैं। हरियाणा के जापतावाला गांव के हरबंस सिंह नामक किसान ने अच्छी किस्म की सब्जियों की चाहत में अपने घर की छत को छोटे-मोटे खेत में बदल डाला। हरबंस सिंह बताते हैं कि उन्होंने अपने एक एकड़ के खेत में गेहूं की फसल बो रखी थी और अपने घर की जरूरतों के लिए सब्जियां उगाना चाहते थे। खेत की कमी के चलते उन्होंने अपने घर की छत पर ही गमलों में सब्जियां उगा लीं। टमाटर, मिर्च, मटर, बैंगन, गाजर, मूली, पालक जैसी दर्जनों किस्म की सब्जियां वे अपनी छत पर ही उगा लेते हैं और वो भी बिना किसी रासायनिक खाद या कीटनाशकों का छिड़काव किए बिना ही।

हरबंस 8 इंची पीवीसी पाइप, लोह की ट्रे, गमले और ड्रमों में मिट्टी भर कर वे सब्जियां उगाते हैं। वे पिछले 5-6 सालों से सब्जी उगा रहे हैं और लोग उनके पास छत पर सब्जी उगाने तरीका सीखने आते हैं।

छत्तीसगढ़ की किसान पुष्पा साहू ने अपने परिवार को रासायनिक खादों से बनी सब्जियों से बचाने के लिए घर की छत पर ही सब्जियां बो डालीं। अब वे अपनी छत पर नियमित रूप से गोभी, बैगन, कुंदरू, प्याज, टमाटर, लौकी, मिर्ची के अलावा पालक, मूली, धनिया, पुदीना आदि साग भी उगाती हैं। यही नहीं अपनी खेती से उत्साहित पुष्पा ने फूलों की क्यारियां भी लगा रखी हैं। गेंदा, गुलाब, मोगरा, नीलकमल जैसे फूलों से उनकी बगिया महकती रहती है। फूल और सब्जियों की खेती के बाद पुष्पा ने अपनी छत पर सेब, अमरूद, केला, आम, मोसंबी, नींबू, चीकू, पपीता, मुनगा आदि फलों के पेड़ भी लगा दिए।

एर्नाकुलम, केरल के एक सिविल इंजीनियर ए आर एस वध्यार अपनी पत्नी जयश्री के साथ पिछले 15 सालों से अपनी छत पर खेती कर रहे हैं। उन्होंने सब्जियों के अलावा पेड़ भी लगा रखे हैं। नारियल के तीन बड़े-बड़े पेड़, केला, पपीता, चीकू, अमरूद आदि के 35 पेड़- ऐसा लगता है कि जैसे हम किसी बगीचे में आ गए हों। यहां पर एक बड़े टैंक में कमल भी खिल रहे हैं। उन्होंने छत पर ही वर्मी कम्पोस्ट बनाने के लिए भी जगह बना रखी है।

छत पर खेती करने के लिए काफी तैयारी करनी पड़ती है। इसके लिए विभिन्न प्रकार के उपायों को अपनाया जा सकता है, जैसे सीपेज रोधी केमिकल की कोटिंग के साथ उच्च गुणवत्ता वाली पॉलीथिन शीट बिछाकर क्यारी का निर्माण किया जा सकता है। घर बनाते समय पहले से ही पूरी योजना के तहत क्यारी बनाई जा सकती है। छत के कॉलम से कॉलम को मिला कर फॉल्स छत का निर्माण आरसीसी द्वारा करने से मजबूत क्यारी बनाई जा सकती है।

ये तो बात हुई बिना खेत के खेती की, आइए अब आपको बताते हैं कि मिट्टी के बगैर भी कैसे खेती की जाती है।

बिना मिट्टी के खेती करने का तरीका हाइड्रोपोनिक्स कहलाता है। इसमें नियंत्रित तापमान पर पौधों को उगाते हैं। मिट्टी की जगह नारियल फाइबर इस्तेमाल किया जाता है। छोटे-छोटे बैगों में नारियल का बुरादा भरकर पोली हाउस में सब्जी के पौधे उगाए जाते हैं। नारियल के इस अवशेष को खेती के लिए लगातार तीन साल तक प्रयोग किया जा सकता है। इसमें फसलें उगाने के लिए द्रव्य पोषण या पौधों को दिए जाने वाले खनिज पहले ही पानी में मिला दिए जाते हैं। आई टी के तीन दोस्तों रूपेश सिंहल, अविनाश गर्ग और विनय जैन ने 2015 में इस प्रोजेक्ट को बनाया। पौधों को पानी देने के लिए इन्होंने दो रिवर्स ऑस्मोसिस (आर ओ) जल-संयंत्र स्थापित किए हैं।

कृषि महाविद्यालय के पूर्व डीन डॉ. विनोद लाल श्रॉफ ने बताया कि नियो हाइड्रोपोनिक विधि से कम खर्च एवं रख-रखाव के साथ रसायनों-कीटनाशकों पर बिना खर्च किए सब्जियां उगाई जा सकती हैं। टोकरियों में कम मिट्टी में सब्जियों के साथ विभिन्न फसलों का उत्पादन लिया जा सकता है। पौधे की जड़ों के बड़ी होकर इस छाबड़ी या टोकरीनुमा गमले से बाहर निकलने पर उसे पानी में डुबोकर रखा जाता है। इससे पौधा जहां मिट्टी से पोषक तत्व लेता है, वहीं चौबीसों घंटे आवश्यकतानुसार जल ग्रहण करता है।

जापान, चीन के बाद बारत में भी इस तकनीक से भारत में भी खेती की तैयारी की जा रही है। बिहार,केरल और महाराष्ट्र में इस तकनीक पर काम किया जा रहा है जिसे धीरे-धीरे देश भर में अपनाया जाएगा। इस तरह बिना खेत और बिना मिट्टी के खेती से रोजमर्रा की जरूरतें पूरी की जा सकती हैं औरआप चाहें तो इसे  एक पूर्णकालिक व्यवसाय भी बना सकते हैं। यही भविष्य की खेती तकनीक हैं।