मॉनसून की मार झेलती आमची मुंबई

मनपा की लापरवाही के कारण हर साल मॉनसून में मुंबई की सड़कें गड्ढों से भर जाती हैं, चारों ओर कीचड़ और गंदगी फैली रहती है। इस कारण मुंबईकर परेशान रहते हैं।

इस बार बरखा रानी ने अपने दर्शन देने में मुंबईकरों को ज्यादा तरसाया नहीं, ठंडी फुहारों की सौगात लेकर समय पर हाजिर हो गई। बरखा रानी का स्वागत करने के लिए दुकानें सज गईं। लोगों ने अपनी जरूरत के मुताबिक छतरियां, रेनकोट, बरसाती जूते-चप्पल खरीद लिए। और इनको पहनकर सब अपने-अपने काम पर हाजिर। लोगों ने अपने-अपने स्तर पर घरों, दुकानों-कार्यालयों आदि की मरम्मत वगैरह करवा कर मॉनसून से निपटने की तैयारी कर ली। मगर यह क्या…? घर से निकलते ही मॉनसून की सारी तैयारी धरी-की-धरी रह गई… टूटे-फूटे फुटपाथ, सड़कों में गड्ढे-गड्ढों में पानी, खुदे हुए सड़कों के किनारे, गटरों से बहती गंदगी, चारों ओर फैला कीचड़… और इन सबको झेलते हुए हम यही सोचते हैं कि क्या एक मनपा को ही नहीं मालूम कि मॉनसून आ गया है? फिर मनपा समय पर तैयारी क्यों नहीं करती? इसी पर एक जायज़ा –

मुंबई में मॉनसून की जोरदार दस्तक हो गई। इस बार मुंबई मनपा ने अपने सालाना बजट में बरसात की मुश्किलों से निपटने के लिए 53.71 करोड़ रुपयों का अनुमानि खर्च रखा है। मनपा ने इस साल लगभग 27 हजार करोड़ रुपयों का बजट पेश किया है। बजट पेश करते हुए मनपा आयुक्त अजॉय मेहता ने गनीमत है कि इस बार टैक्स में कोई बढ़ोतरी नहीं की। वैसे भी मनपा नागरिकों को सुविधाएं, सेवाएं देने में खर्च करने के मामले में पीछे ही रहती है। बड़ा बजट होने के बावजूद मूलभूत सुविधाओं पर कम खर्च किया जाता है। इसीलिए मुंबईकरों की हालत हमेशा बदहाल रहती है।

मनपा का सबसे बड़ा इम्तहान मॉनसून में होता है, पर अफसोस हर बार वह फेल हो जाती है। बरसात में सड़कों की बुरी दशा हो जाती है। टूटी-फूटी गड्ढों से भरी सड़कें, लो-लाइन एरिया में जल-जमाव, गटर-नालों में कचरा जमा होने से पब्लिक की परेशानियां बढ़ती हैं। घर से अपने काम को निकले लोग हैरान-परेशान घर वापस पहुंचते हैं। आम दिनों की अपेक्षा बरसात में दुर्घटनाओं की गिनती बढ़ जाती है। इन्हीं सबको देखते हुए इस साल मनपा आयुक्त ने बजट पेश करने के दौरान मॉनसून से निपटने की योजनाओं पर प्रकाश डाला था।

31 मई से पहले शहर के सभी नालों व गटरों-नालियों की सफाई करने, फुटपाथों की मरम्मत करने व मॉनसून जनित बीमारियों के प्रसार को रोकने की पूर्व तैयारी आदि को पूरा करने के आदेश दिए जा चुके थे। पर मौसम की पहली ही बारिश ने इन योजनाओं पर पानी फेर दिया। जगह-जगह पानी भरा, सड़कों के गड्ढे मुंह चिढ़ाने लगे। कचरे नालियों से निकल कर सड़कों पर स्वच्छता मिशन की कलई खोल रहे हैं। फुटपाथों पर लगे पेवर ब्लॉक उखड़ गए हैं, ऐसा लगता है कि वहां कभी सीमेंट लगा ही नहीं था।

मेनहोल पर ढक्कन और उसके नीचे जाली लगाने के भी आदेश दिए गए हैं। बैठक में बताया गया कि इस साल बड़े नालों से लगभग 4 लाख, 94 हजार 739 टन सील्ट एवं कचरा निकलेगा। मानसून के पहले 70 प्रतिशत यानी 3 लाख 46 हजार 318 टन कचरा निकाला जाएगा। जबकि 30 प्रतिशत सील्ट बारिश के बाद निकाला जाएगा। इसी तरह छोटे नालों से बारिश के पहले 70 प्रतिशत मतलब 2 लाख 23 हजार 570 टन सील्ट निकाला जाएगा। इस साल नाला सफाई पर मनपा 154 करोड़ रुपए खर्च करेगी। मनपा की योजनाओं का स्वागत है परंतु आम मुंबईकर के मन में एक सवाल हमेशा उबलता रहता है कि मनपा मॉनसून से पहले ही क्यों साफ-सफाई करने बैठती है, ये सभी कार्य नियमित रूप से पूरे सालभर नहीं होने चाहिए क्या?

सड़कों की मरम्मत और गड्ढों के भरने का काम नियमित रूप से पूरे सालभर क्यों नहीं होने चाहिए? जिस कॉन्ट्रैक्टर को सड़क बनाने का कॉन्ट्रैक्ट दिया जाता है, उससे ही सड़क के रख-रखाव की जिम्मेदारी देनी चाहिए। जिम्मेदारी न निभाने पर उस पर जुर्माना लगाना चाहिए। बिजली विभाग, टेलीफोन विभाग, गैस पाइप लाइन, केबल आदि भूमिगत कामों के लिए आए दिन सड़कें खोदी जाती हैं। उनका काम पूरा होने के बाद वे फुटपाथ की मरम्मत ठीक से नहीं करते नतीजन ये मलबे भी बरसात में बह कर सड़कों पर आ जाते हैं। इस वजह पैदल चलने वालों के गिरने, गंभीर चोट लगने की घटनाएं भी होती हैं। ट्रैफिक-जाम भी एक गंभीर समस्या है जिससे हर मुंबईकर त्रस्त है। मॉनसून में यह समस्या विकराल रूप धारण कर लेती है। प्रदूषित नदी-नालों, खाड़ियों, गटरों में भरे कचरे गंदगी बढ़ाते हैं और इनसे बढ़ती हैं जानलेवा बीमारियां। जर्जर इमारतों के ढहने और भू-स्खलन से हुई दुर्घटनाओं में भी जान-माल की हानि होती है। बरसात में मुंबईकरों का जीवन कठिन हो जाता है। मनपा चुनाओं में हर साल मुंबई वाले इसी उम्मीद में नगरसेवक चुनते हैं कि इस बार का प्रशासन इन समस्याओं से निजात दिलाएगा। मुंबईकर पूरे सालभर खून-पसीना बहा-बहाकर कमाते हैं और पूरी तत्परता से टैक्स भी चुकाते हैं। मगर उन्हें उतनी सुविधाएं और सुरक्षा नहीं मिलतीं जितने के वे हकदार हैं। प्रशासन की कमजोर इच्छाशक्ति, सिस्टम में फैला भ्रष्टाचार, अयोग्य व्यक्तियों का नेतृत्व आदि के कारण इतनी बड़ी बजट वाली मुंबई अच्छी व्यवस्थाओं और सुविधाओं को आज भी तरस रही है। जब मुंबईकरों द्वारा भरे गए टैक्स की एक-एक पाई का सही उपयोग होगा तभी आमची मुंबई की खुशहाली और समृद्धि बढ़ेगी।