अर्थव्यवस्था की दशा-दिशा

जीएसटी के कारण छोटे और बड़े दोनो प्रकार के उद्योगों पर समान टैक्स लगने के कारण छोटे उद्योगों को नुकसान हो रहा है। छोटे उद्योगों का धंधा चौपट हो रहा है।

मेरे सामने सवाल यह है कि क्या मैं दुविधा में हूं? क्या मैं अभी सच तक नहीं पहुंच पाया हूं? हां, यह सवाल बराबर है। कोटक एएमसी के प्रबंध निदेशक नीलेश शाह ने एक लेख में भारतीय अर्थव्यवस्था की समीक्षा करते हुए कहा है कि फिल्म ‘संजू’ ने ‘बाहुबली-2’ से भी ज़्यादा बड़ी आपेनिंग की है जो इस बात का प्रमाण है कि शहरों में उपभोग बढ़ रहा है। पिछले साल एक लाख सोनालिका ट्रैक्टर बिके थे और महिंद्रा एंड महिंद्रा तथा एस्कार्ट्स के ट्रैक्टरों की बिक्री बढ़ रही है। ग्रामीण बाजार में डाबर, लीवर तथा आईटीसी जैसी एफएमसीजी कंपनियों के उत्पादों की बिक्री भी बढ़ रही है। यह इस बात का प्रमाण है कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था भी मजबूत है। मारुति बलेनो की डिलीवरी पर चार महीने की वेटिंग चल रही है। टाटा के व्यावसायिक वाहनों की बिक्री भी बढ़ रही है। व्यावसायिक वाहनों की बिक्री से बाजार की नब्ज़ का पता चलता है। स्पष्ट है कि हमारी अर्थव्यवस्था मजबूत स्थिति में है। जीएसटी का कलेक्शन एक लाख करोड़ से ऊपर गया है। इस समय हमारी अर्थव्यवस्था 25 खरब की है जो अगले 7-8 साल में दुगनी हो सकती है।

अर्थव्यवस्था को लेकर यह एक नज़रिया नीलेश शाह का है। इसके विपरीत नामचीन आर्थिक स्तंभकार डा. भरत झुनझुनवाला का विश्लेषण है कि जीएसटी के कारण छोटे उद्योगों पर बड़ी मार पड़ी है, उसका हमारी अर्थव्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ा है और इसका दीर्घकालीन असर भी खराब ही होगा। जीएसटी लागू होने के बाद करदाताओं की संख्या में लगभग 26 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इससे अंतरराज्यीय व्यापार सरल हो गया है, लेकिन अर्थव्यवस्था में गति आने के बजाए ढिलाई आ रही है। वर्ष 2016-17 में हमारी जीडीपी विकास दर 7.1 प्रतिशत थी, जो 2017-18 में घटकर 6.7 प्रतिशत हो गई है। जीएसटी के कारण बड़े उद्योगों को लाभ हुआ है लेकिन छोटे उद्योग नुकसान में हैं। देश में छोटे उद्योगों की भूमिका महत्वपूर्ण है और ये रोज़गार सृजन का बड़ा साधन हैं। जीएसटी लागू होने से पहले छोटे उद्योगों को टैक्स में छूट दी जाती थी क्योंकि छोटे उद्योग ज़्यादा रोज़गार पैदा करते हैं और उद्यमिता का विकास भी करते हैं, लेकिन अब छोटे और बड़े उद्योगों में टैक्स का अंतर समाप्त हो गया है। छोटे उद्योगों की उत्पादन क्षमता कम होने से उनकी उत्पादन लागत ज़्यादा होती है जबकि टैक्स की दर समान हो जाने के बाद वे बड़े उद्योगों के सामने टिक नहीं पा रहे हैं। उनकी आय कम हुई है। बड़े उद्योगों की बिक्री बढ़ी है क्योंकि उनके लिए अपना माल एक राज्य से दूसरे राज्य में ले जाना आसान हो गया है। बड़ी कंपनियों की बिक्री बढ़ने के बावजूद बड़ी संख्या में छोटे उद्योगों के बंद होने के कारण बाजार में वस्तुओं की कुल मांग घटी है। छोटे उद्योग बंद होने या उनमें छंटनी होने के कारण अचानक बेरोज़गार हो रहे लोगों को तुरंत कोई नया रोज़गार नहीं मिलता, जिससे जीडीपी की वृद्धि दर में कमी आई है। परिणाम यह है कि जीडीपी की विकास दर में गिरावट तथा बड़े उद्योगों के मुनाफे में वृद्धि साथ-साथ दिख रही है। जुलाई 2017 में जीएसटी की वसूली 94 हजार करोड़ हुई थी। जून 2018 में यह 96 हजार करोड़ रही है। वर्ष 2006 से 2014 तक के 9 वर्षों में केंद्र सरकार का राजस्व 15 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा था। जीएसटी लागू होने के बाद उसमें वृद्धि शून्यप्राय हो गई है। यह जीएसटी के नकारात्मक प्रभाव का प्रमाण है, लेकिन चूंकि अर्द्ध-मृत छोटे उद्योग भी जीएसटी की रिटर्न फाइल कर रहे हैं इससे करदाताओं की संख्या में वृद्धि दिख रही है।

जीएसटी का कलेक्शन एक लाख करोड़ से ऊपर गया है। इस समय हमारी अर्थव्यवस्था 25 खरब की है जो अगले 7-8 साल में दुगनी हो सकती है।

जीएसटी के कारण हो रही दुर्दशा से अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा है तो गाड़ियों की बिक्री क्यों बढ़ रही है, फिल्में क्यों हिट हो रही हैं, लोग पैसा कैसे खर्च कर रहे हैं? यह सवाल सचमुच अर्थपूर्ण है और इसका जवाब मिलना चाहिए। बड़ी कंपनियों की बिक्री बढ़ रही है, उनका लाभ बढ़ रहा है, चाहे कम ही सही, इससे उन्हें नए कर्मचारियों की आवश्यकता भी पड़ेगी, इसमें कोई शक नहीं है कि इससे कुछ नए लोगों को रोज़गार भी मिला होगा या आगे मिलेगा। यह भी एक सच है कि बड़े उद्योग सिर्फ शहरों में ही नहीं हैं, गांवों में भी हैं। बहुत-से औद्योगिक क्षेत्र शहरों से दूर, गांवों के आस-पास हैं या गांवों में हैं। इन बड़े उद्योगों के फलने-फूलने से आस-पास के गांवों के कुछ नए लोगों को भी रोज़गार मिलेगा ही।

 यह स्पष्ट है कि अर्थव्यवस्था की वर्तमान हालत को लेकर मैं किसी संशय में नहीं हूं, मुझे कोई दुविधा नहीं है और यह शीशे की तरह साफ है कि परेशानियां झेल रहे छोटे और मझले उद्योगों को भी जीएसटी का रिटर्न तो भरना ही पड़ रहा है जिससे जीएसटी का रिटर्न फाइल करने वालों की संख्या में इज़ाफा हुआ है। समझने की बात यह है कि सिर्फ जीएसटी रिटर्न भर देना ही किसी उद्योग के सेहतमंद होने की गारंटी नहीं है। इसमें तो कोई दो राय है ही नहीं कि अमीर और गरीब के बीच की खाई बढ़ी है। शहरों में या गांवों में जिन लोगों को नए रोज़गार मिले हैं उनके खर्च बढ़े हैं, जो लोग पहले ही अमीर थे और अब और अमीर होते जा रहे हैं, उनके खर्चों में अनाप-शनाप बढ़ोत्तरी हुई है। उनके घरों में गाड़ियों की संख्या बढ़ी है, वस्तुओं के उपभोग बढ़े हैं। लेकिन क्या ये लोग पूरे भारत की पूरी तस्वीर पेश करते हैं? हम सब जानते हैं कि यह संभव नहीं है। एक छोटा-सा वर्ग ज़्यादा अमीर हुआ है। एक छोटे-से वर्ग के लोगों के खर्च बढ़े हैं। इस वर्ग की संख्या में भी थोड़ा इज़ाफा हुआ है, लेकिन यह संख्या बहुत छोटी है। यही कारण है कि एक तरफ तो आंकड़े लोगों के बढ़ते खर्च की ओर इशारा करते हैं दूसरी तरफ अर्थव्यवस्था की सुस्ती भी सामने नज़र आ रही है। अत: प्रधानमंत्री, वित्तमंत्री और संबंधित अधिकारियों को सोचना होगा कि अर्थव्यवस्था में वास्तविक मजबूती के लिए क्या किया जाए?