सिनेमाघरों में अब ले जा सकेंगे अपना खाना

महाराष्ट्र सरकार के नए नियम के मुताबिक अब आप मल्टीप्लेक्स में अपना खाना ले जा सकेंगे। सरकार वहां के अत्यधिक महंगे खाने की कीमतें भी नियंत्रित कर सकती है।

आखिरकार ऊपरवाले ने मेरी सुन ही ली! अब वो दिन दूर नहीं जब हम सिनेमाघरों में अपना खाना या खाने का सामान बाहर से ले जा सकेंगे। अब तक तो सिनेमा हॉल में बाहर से खाने-पीने की चीजें ले जाने पर पाबंदी है। आपको जो भी खाना-पीना है हॉल के फूड काउंटर से ही खरीदना पड़ता है जोकि बेहद महंगी होती हैं। इन खाद्य पदार्थों की आसमान छूती कीमतें देखकर ही आंखें चौड़ी हो जाती हैं। पॉपकॉर्न खरीदने जाओ तो होश उड़ जाते हैं, कोल्ड्रिंक लेने जाओ तो पसीने छूट जाते हैं। सिनेमाहॉल वालों की मनमानी से फिल्म देखने के मूड का सत्यानाश हो जाता है, ऊपर से बच्चों की डिमांड पूरी करने के चक्कर में पूरे हफ्ते का बजट उड़ जाता है। पर अब मेरी तरह दो बच्चों वालों को थोड़ी राहत मिलने वाली है।

हुआ यूं है कि बॉम्बे हाई कोर्ट के एक आदेश पर महाराष्ट्र सरकार सिनेमाहॉल मालिकों पर नकेल कसने वाली है। खाद्य आपूर्ति मंत्री रविंद्र चव्हाण ने सिनेमा के हॉल के अंदर बाहरी भोजन की अनुमति देने के सरकार के फैसले की घोषणा की और लोगों को ऐसा करने की अनुमति न देने वाले के खिलाफ कार्रवाई की चेतावनी दी है। इस घोषणा के आधार पर अब आप 1 अगस्त 2018 से महाराष्ट्र में मल्टीप्लेक्स सिनेमा हॉल में अपनी मनपसंद और अपनी जरूरत की खाने-पीने की चीजें अपने साथ ले जा सकते हैं। सिक्यूरिटी गार्ड सुरक्षा के नाम पर अब आपके बैग से खाने-पीने का सामान निकाल कर आपको सरे-आम बेइज्ज़त नहीं कर पाएंगे।

पिछले दिनों दो जजों की एक पीठ ने याचिकाकर्ता जैनेंद्र बक्षी की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए महाराष्ट्र सरकार से पूछा कि वह क्यों नहीं राज्य भर में मल्टीप्लेक्स में अत्यधिक दरों पर बेची जाने वाली खाद्य वस्तुओं की कीमतों को नियंत्रित नहीं कर सकता है! बक्षी के वकील आदित्य प्रताप ने अदालत का ध्यान इस बात पर भी दिलाया कि महाराष्ट्र सिनेमाज़ (विनियमन) नियम सिनेमाघरों और सभागारों के अंदर भोजन को बेचने और बेचने पर रोक लगाते हैं। ऐसा कोई कानूनी या वैधानिक प्रावधान नहीं है जो किसी व्यक्ति को फिल्म थिएटर के अंदर व्यक्तिगत भोजन-सामग्री या पानी ले जाने से रोकता है।

इस पर मल्टीप्लेक्स मालिक एसोसिएशन के वरिष्ठ वकील इकबाल छागला ने तर्क दिया कि उनका एसोसिएशन थिएटर के अंदर खाद्य वस्तुओं को बेचने वाले खुदरा विक्रेताओं द्वारा निर्धारित कीमतों में हस्तक्षेप नहीं कर सकता है। एसोसिएशन ने यह भी कहा कि जब कोई मूवी टिकट खरीदता है, तो यह अनुबंध का हिस्सा बन जाता है कि उसे बाहर का भोजन लाने की अनुमति नहीं दी जाएगी। सुरक्षा कारणों से जनता को घर से खाना ले जाने से मना किया जाता है। वे इन तीन घंटों के लिए कुछ भी नहीं खरीदने के लिए स्वतंत्र हैं। चूंकि पानी उपलब्ध कराना अनिवार्य है इसलिए सिनेमाघरों में फिल्टर और आरओ का पानी पीने के लिए मुफ्त में प्रदान कराया जाता है।

मल्टीप्लेक्स मालिक एसोसिएशन के तर्कों से अदालत नाखुश नज़र आई इसलिए कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को आदेश दिया है कि सिनेमाहॉल में बेची जाने वाली कीमतें बाजार की कीमतों के समान होनी चाहिए। इसके लिए कोर्ट ने सरकार को बॉम्बे पुलिस कानून की जांच करने का सुझाव दिया है कि एक ही राज्य में अलग-अलग कीमतें क्यों? अब राज्य सरकार को आवश्यक नियमों को पेश करने और अपने स्टैंड को रखने के लिए चार सप्ताह के भीतर हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है।

अगर महाराष्ट्र सरकार ने न्यायालय के आदेशानुसार अपना काम सही ढंग से सही समय पर कर दिया तो सिनेमाप्रेमियों को बड़ी राहत मिलेगी। वे अपने परिवार के साथ खुशी-खुशी सिनेमा देखने का शौक पूरा कर सकते हैं। मां-बाप भी बाहर से किफायती चीजें खरीद कर बच्चों के साथ बेफिक्र होकर सिनेमा देखने जा सकते हैं। अब फिल्म देखने के नाम पर उनकी जेब कटने से बच जाएगी।

… पर जरा ठहरिए! ये क्या महाराष्ट्र सरकार की सिनेमा के हॉल के अंदर बाहरी भोजन की अनुमति देने की घोषणा के बाद बड़े मल्टीप्लेक्सों पीवीआर के शेयर की कीमतों में 12% और आइनॉक्स लेज़र, मुक्ता आर्ट्स के शेयर की कीमतों में 14% तक की गिरावट आ गई! … तो इसका मतलब यह सकता है कि ये मल्टीप्लेक्स अपना कारोबार बचाए रखने के लिए सिनेमा के टिकटों की कीमत बढ़ा सकते हैं! …   

…. तो सिनेमाप्रेमियों की खुशियों पर फिर गया न पानी! फिर भी इतनी जल्दी निराश होने की जरूरत नहीं है। सरकार इस पहलू पर भी गौर करेगी ही। … बहरहाल अगर महाराष्ट्र में सिनेमाघरों पर नकेल कस गई तो पूरे देश में इसे लागू किया जाना चाहिए। एक देश, एक कानून!